कहाँ से फिर निकला
कहाँ से फिर निकला आरजुओं का सैलाब
चंद कागज़ लपेट ,जिंदगी बन गई है किताब /
कभी लगता पहन ल़ू ,लगता कभी ओढ़े बैठा हूँ
नज़र क्यों आती है ,हर चेहरे पे नकाब/
तेरे सवालों में उलझे है,तेरे दामन की तरह ,
कभी फुर्सत में कर लेना ,जवाबो का हिसाब /
बंद आखो का ही बस ,ये करिश्मा है ,
हमको मालूम है ,क्या होता है ख्वाब /
नाम ओहदों के साथ दफ़न ‘अरमान’
पूछिए अपना पता, अब किससे ज़नाब//
बहुत सुंदर