ना जाने किन खयालों में
खोई रहती है दुनिया
मेरा-मेरा करती रहती है दुनिया
अपनी तो देह भी साथ नहीं देती
सब कुछ यहीं रह जाता है
फिर किस मद में चूर रहती है दुनिया
भाई हो या जीवनसाथी हो
कोई साथ नहीं जाता
बस दो-चार दिन जनाजे पर
रो लेती है दुनिया
कमा-कमाकर नोटों के
गट्ठर लगा लेते हैं सब
एक कौड़ी भी साथ नहीं जाती
जब छूट जाती है दुनिया
ऊपरवाले को कोई याद नहीं करता
जिसने बनाई है ये सुंदर-सी दुनिया
महज छलावा है जग में, सब नश्वर है
किरदारों का रंगमंच बस है दुनिया…