कुछ खत रेत पे लिखे
कुछ खत रेत पे लिखे , मैंने तेरे लिए
फिर हवाओं को सदा दी, मैंने तेरे लिए
अपने हिस्से की बूंदे तोगिरा दी मैंने
कुछ आँखों में छुपा दी ,मैंने तेरे लिए
तेरे खत को जब तरसने लगी आँखें
कुछ खत जलाये थे ,मैंने तेरे लिए
वस्ल के वो दिन जब अँधेरे से लगे
इक दीप जलाया था मैंने तेरे लिए
बाग़ के फूल जब टूट गए टहनी से
किसी तितली को उड़ाया,मैंने तेरे लिए
रात चाँद को देखा तारों से घिरे हुए
अपने सूरज को जगाया ,मैंने तेरे लिए
राजेश’अरमान’
वाह