Categories: ग़ज़ल
शशांक तिवारी
आईएएस प्रार्थी , कवि ,लेखक
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उम्मीदों का पुलिंदा
उम्मीदों ने ही किया घायल और उम्मीदों पे ही जिंदा था, इस उम्मीद- ए- जहां का मै एक मासूम परिंदा था।। कूट के भरा था…
तुम्हारी व्यथा
कितनी व्यथा है तुम्हारी जो कम होने का नाम ही नही लेती, आंख मेरी नम कर जाती रोटी से शुरू हुई पलायन तक गई पर…
माँ मेरी
तुम्हारे हाथ का हर एक छाला, चुभा जाता है इस दिल में एक भाला, हर एक रेखा जो तुम्हारी पेशानी पर है, एक दास्तां बयां…
नज़र ..
प्रेम होता दिलों से है फंसती नज़र , एक तुम्हारी नज़र , एक हमारी नज़र, जब तुम आई नज़र , जब मैं आया नज़र, फिर…
तुम्हे मालूम हो ..
तुम्हे मालूम हो … कुछ बाकी सा रह गया है तुम्हारे – मेरे दरम्यान… जिसे मैं बहुत कोशिश करने पर भी शब्द नहीं दे पाता,…
nice poem bro 🙂
umda!
Good