कोई दिल का मेरे चारागर होता
कोई दिल का मेरे चारागर होता
यूँ न तन्हा मेरा सफ़र होता
आज फिर दिल ने आरजू की है
घर के अंदर मेरा घर होता /
वो जो रहते थे हमसाये की तरह
मेरी परछाई में फिर क्यों न बसर होता
अब गिला क्या करें किन बातों का
गर जो होना था कुछ असर होता
आज मैं दूर बहुत दूर चला आया हूँ
काश के पास मेरा शहर होता/…
जुस्तजू की भी कोई होती अगर जुस्तजू
फसले-गुल न होती, न कोई शजर होता
कोई दिल का मेरे चारागर होता———–
RAJESH ‘ARMAN’
वाह बहुत सुंदर रचना ढेरों बधाइयां