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क्या कहूँ!! ओ ज़ालिम

क्या कहूँ!!
दिल में कितनी उदासी छाई है,
तेरी बेरुखी मेरी जान पर बन आयी है।
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मैं एक गुमशुदा सी शाम हूँ और,
तू मेरी रुसवाई है।
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इन तूफानों के आगे,
दिल में मीलों की खाईं है।
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समझ नहीं पाती हूँ मैं कभी-कभी,
ये तेरी मोहब्बत है या बेवफाई है।
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मेरे अश्कों से तेरा दिल नहीं पिघलता,
ओ ज़ालिम! तू कितना हरजाई है।
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