खौफ आईने का
खौफ आईने का हर शक्ल पर भारी है
हर शक्ल आईने के सामने आकर बिखर जाती है
कुछ तो रहस्य छिपा है आईने में शक्ल जो सिहर जाती है
आईने को तोड़ के देखा शक्लों में शक्ल बस नज़र आती है
हर झूठ अपना ही बुना कोई आडम्बर है
चुभता आईना अपने ही अंदर का कोई घर है
चिंतन पे लगे है दरवाज़े पर खुलते नहीं
जेहन में आते है सब पर मन मिलते नहीं
सहमे से सच दम तोड़ते पर चीखते नहीं
खौफ आईने का हर शक्ल पर भारी है
राजेश’अरमान’
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