गमछे रखकर के अपने कन्धों पर….
गमछे रखकर के अपने कन्धों पर
बच्चे निकले हैं अपने धन्धों पर।
हर जगह पैसे की खातिर है गिरें
क्या तरस खाएं ऐसे अन्धों पर।
सारा दिन नेतागिरी खूब करी
और घर चलता रहा चन्दों पर।
अपना ईमान तक उतार आये
शर्म आती है ऐसे नंगों पर।
जितने अच्छे थे वो बुरे निकले
कैसे उंगली उठाएं गन्दों पर।
जिन्दगी कटती रही, छिलती रही
अपनी मजबूरियों के रन्दों पर।
……..सतीश कसेरा