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गीली रेत पर…..

थमी हुई जिंदगी
थमे हुए पल
रुकती, चुकती सांसें
उंगलियों की पोरों से छूटते
रिश्तों के रेशमी धागे
ठंडी, बेजान दीवारों से टकराते
जीने, मरने, हंसने और रोने के पल
कितना कुछ
लिख गया गुज़रता साल
गीली रेत पर

कोई तो मौज हो
मिटा जाए इस अनचाही तहरीर के निशान
छू जाए
आते साल का पहला क़दम
कि ज़िंदगी बेख़ौफ फिसल आए
बेजान दीवारों से
फिर लिख जाए अपना नाम
गीली रेत पर

डॉ. अनू
३१.१२.२०२०

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