जब श्रीमतीजी अफसर बनी
जब श्रीमतीजी अफसर बनी तो ,
हमारी ख़ुशी हो गई दो गुनी ,
हमने सोचा इसके दो दो लाभ होंगे,
एक तो बढेगा रुवाब हमारा,
दूसरा तंगी में चल रहे हाथ भी ढीले होंगे.
लेकिन ये ख़ुशी तो चाँद दिनों कि थी,
उनका अफसर बनना था, किस्मत हमारी फूटनी थी.
अब तो वो घर में टिकती ही ना थी,
जहाँ भी जाती हमे आर्डर सुना जाती थी-
“मै जा रही हूँ फलां जगह,
इसलिए करना है घर का सारा काम तुम्हे”,
जब हम भी करते चले कि दरख्वास्त,
वो देती हमे तपाक से जवाब-
” तुम हो एक साधारण क्लर्क, और मै अफसर शानदार,
मुझे आती है शर्म जब तुम होते हो मेरे साथ”.
इतना सुनते ही मै शर्म से गढ़ जाता हूँ,
आगे कुछ कहने कि हिम्मत नहीं कर पाता हूँ.
अब तो क्या बताएं दोस्तों ये रोज़ का रूटीन हो गया है,
वो पार्टियों में घूमते है,हम चकले बेलन से जूझते है.
एसी बुरी किसी पर ना आये, जैसी हम पर आय बनी.
जब से श्रीमतीजी अफसर बनी…
Nice anil ji
धन्यवाद श्रीधरजी