जिसकों कहतें थे हम हमसफ़र अपना।
जिसकों कहतें थे हम हमसफ़र अपना।
वो तो था ही नही कभी रहगुज़र अपना।।
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तुमको मुबारक हो भीड़ इस दुनिया की।
हम काट लेंगे तन्हा ही ये सफर अपना।।
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भूल गए हो यक़ीनन तुम अपने वादे सारे।
पर उदास रहता है वो गवाह शज़र अपना।।
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न कोई मुन्तज़िर है न है कोई आहट तेरी।
फिर भी सजाता है कोई क्यू घर अपना।।
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ऐ बादल बरसों ऐसे भीगों डालो सबकुछ।
की साहिल जलता बहुत है ये शहर अपना।
@@@@RK@@@@
बहुत सुंदर
Good