जी की इस आफत से पीछा कैसे छुडवाऊँ मैं

जी में रड़क रही है साँसे की बस मर जाऊँ मैं
बे-वक़्त के दिले-बीमार आहे किसे सुनाऊँ मैं

मेरे टूटे हुये दिल की अब सदा हो गई हो तुम
इस दर्दे-दिल को अब और कैसे गुन-गुनाऊँ मैं

खैंच-खैंच के आहे-दर्द रोज साँसे लेनी पड़ती है
खुल के इन हालातों में अब कैसे मुस्कुराऊँ मैं

मेरे खाके-दिल में कुछ शरार अब भी बाकी है
जी की इस आफत से पीछा कैसे छुडवाऊँ मैं

चीख रही है भीतर भीतर ख़ामोशी अब मेरे
मासूम से दिल को लोरी पे कैसे सुलाऊँ मैं

आँखों से अब हर घडी मेरे खून टपकता है
ये हलाते-हयात-पुरव अब किसे दिखाऊं मैं

Related Articles

Responses

+

New Report

Close