डोर रिश्तों की नाज़ुक

डोर रिश्तों की नाज़ुक होती है
कभी फूल ,कभी चाबुक होती है
राजेश’अरमान’

Related Articles

सम्बन्ध

रिश्तों की डोर मे मजबूरियों का यह क्या सिला है, अपनों के बीच यह कैसा नफ़रत का फूल खिला है गुलिस्तां महकता था कभी जिनकी…

Responses

New Report

Close