तेरे सिर पर सज के सेहरा
तेरे सिर पर सजके सहरा
प्रश्न तुमसे जब करेगा
यूँ मुझे मस्तक पर रखकर
जा रहे किस ओर तुम हो
तुम कहोगे जा रहा हूँ
लेने अपनी संगिनी को,
तो कहेगा रास्ता उधर है
जा रहे विपरीत तुम हो।
तेरे सिर पर सजके सहरा…।।
वस्ल’ में सज कर तुम्हारी
यामिनी तुमसे मिलेगी
मेरे उपवन की कली वो
प्यार से चुनने लगेगी
तब कोई अल्हड़-सा भंवरा
आ के तुमसे यह कहेगा,
था किया वादा कभी जो
तोड़ते क्यों आज तुम हो।
तेरे सिर पर सज के सेहरा….।।
जब कोई रुख पर तुम्हारे
जुल्फ अपनी खोल देगा
और तेरे वक्ष से सट करके
लव यू’ बोल देगा
तब करोगे क्या बताओ ?
प्रज्वलित तन हो उठेगा
मैं कहूंगी बेवफा हो
या तो फिर लाचार तुम हो।
तेरे सिर पर सज के सहरा…।।
मुझसे ज्यादा प्रेम तुमसे
करती है कोई तो बताओ !
गर बसा कोई और दिल में
तो बता दो ना छुपाओ ?
क्या मुझी से प्यार है ???-
जब भी मैं तुमसे पूछ बैठी
कल भी तुम नि:शब्द थे और
आज भी नि:शब्द तुम हो।
तेरे सिर पर सज के सेहरा…।।
नैनों में होगी उदासी
खालीपन होगा ह्रदय में
बाहों में तो सोई होगी,
होगी ना पर वो हृदय में
तब कोई संदेश मेरा
आ के तुमसे ये कहेगा-
मेरी कविताओं का अब भी
हे प्रिये! आधार तुम हो।
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