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दोस्ती और मुहब्बत

मुहब्बत में कभी-कभी,
घर छूटते हैं
मुहब्बत में अक्सर ही,
दिल टूटते हैं
दोस्ती की देखो,
निराली ही शान है
दोस्ती के सिर पे,
ना कोई इल्ज़ाम है
मुहब्बत के मैं, विरुद्ध नहीं,
बशर्ते मुहब्बत हो शुद्ध और सही
एक बार मुहब्बत,
हो जाए किसी से
फ़िर दुबारा भी हो,
वो तो मुहब्बत नहीं है
दोस्ती का रिश्ता,बड़ा ही पाक है
दोस्ती के दामन पर, ना कोई दाग है
एक बार ही मुकम्मल,
हो जाए इस जहां में मुहब्बत
ये ही क्या कोई कम बड़ी बात है
हाथों में गर हाथ है किसी का,
होली है दिन और दीवाली की रात है
दोस्ती की अपनी अलग ही शान है,
दोस्ती का कुछ अलग ही मान है ..

*****✍️गीता

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