नहीं मालूम है कैसे गुजारा कर रही हूं

नहीं मालूम है कैसे गुजारा कर रही हूं
मैं रातें जाग कर आंखें सितारा कर रही हूं।

इरादा कर तो लूं एक बार फिर दिल को लगाने का
मुझे मालूम है गलती दुबारा कर रही हूं।

वो कहता है सिगरेट नहीं तुम हो जरूरी
किसी की जिंदगी में फिर उजाला कर रही हूं।

किसी तस्वीर को पूरा किया था खूँ से अपने
जला कर अब उसे इस दिल को काला कर रही हूं।

वो आया था मेरे नज़दीक मुझसे पूछने ये
मैं जिंदा हूं नहीं फिर क्यों दिखावा कर रही हूं

मैं उसके हिज्र में कुचले फूलों को उठा कर
मैं अपनी अर्थी की सुंदर सजावट कर रही हूं।

वो जैसा है जहां भी है हमेशा खुश रहे बस
मैं उसके आंसुओं को अपने हिस्से लिख रही हूं।

जुबां पर आज उसके जिक्र आया है हमारा
मैं किसकी जिंदगी में अब उजाला कर रही हूं।

मोहब्बत है अगर एक बार तो मुझको बता दे
तेरे इनकार पर भी कब से हामी भर रही हूं।

वो मेरी मांग का सिंदूर माथे पर सजाती
मैं उस पग धूल को माथे की बिंदी कर रही हूं।

पिता का सर झुका हो ये नहीं हरगिज गवारा
इसी कारण तुम्हारे इश्क का खूं कर रही हूं।

मेरी आत्मा का ब्याह तो कब से हुआ है
महज अब मांग में सिंदूर भर कर सज रही हूं।

मेरी रूह के हर पोर में है वो समाया
फकत अब मैं किसी से जिस्म साझा कर रही हूं।

मेरी रूह मुझको हर दफा झकझोर देती
मैं घरवालों की खातिर क्या दिखावा कर रही हूं।

अपने बेटे का नाम ‘प्रशांत रखा है मैने
एक उसकी हंसी में मुस्कुरा कर जी रही हूं।

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