न जाने किस तरक्की की

न जाने किस तरक्की की बात करते हो
जब देखो नफरतों की बरसात करते हो

हम बैठे है सरेराह जवाबों के तस्सवुर में
जनाब तुम हो की हमसे सवालात करते हो

जब भी मिलते हो नकाब ओढ़े मिलते हो
बड़े अजीब हो कैसी ये मुलाकात करते हो

ख़ाली हाथों की हक़ीक़त से वाकिफ लेकिन
काम कैसे कैसे फिर   दिन रात करते हो

उम्र को नवाज़ों आखिर  किसी दहलीज से
क्या बारहा  ये बच्चों सी खुराफात करते हो

             राजेश’अरमान’
 
        

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