न वक़्त बेवफा

न वक़्त बेवफा न ज़माना
बस फासलों ने वफ़ा न की
 राजेश’अरमान’

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कोई चांद बुझाना

हम जमाने से हैं तंग तंग हमसे जमाना अंधेरा ओढ़ती हूं कोई चांद बुझाना। पैरों के नीचे की जमीं भी छीन ली सबने लटकी हूं…

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