पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं ।।
करूँ क्यों मैं भला चोरी
घर में हैं बहुत माखन।
नचाती नाच छछिया पे
चखूँ मैं स्वाद को माखन।।
चूमकर गाल को मेरे
करती लाल सब ग्वालन।
छुपाने को इसी खातिर
लगाती मूँह पे माखन।।
सताई सब मुझे कितना
तुझे कैसे बताऊँ मैं?
पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं।।
चराए शौख से कन्हा
मिलकर ग्वाल संग गैया।
गरीबी में करे कोई
मजूरी हाथ से मैया।।
भरन को पेट मैं इनके
घर -घर खास की जाऊँ मैं।
‘विनयचंद ‘हो मगन मन- मन
लीला रास की गाऊँ मैं।।
पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं।।