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पाकीज़गी अब दिखती नहीं।

पाकीज़गी अब दिखती नहीं ,
इन आबो-हवा में भी ।
कभी दम घुटता है तो,
कभी मन ।
कभी सास भी बेपरवाह हो जाती है ,
हां, यह रुख भी बदला है ,
अब सुकून देती नहीं,
चैन छीन लेती है ,तो कभी नींद।
परिवेश बदला है, या हम ।
पाकीज़गी अब दिखती नहीं,
इन आबो-हवा में भी।

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