Site icon Saavan

पुस की रात

पुस की रात जरा सा ठहर जा।

तेरे तेज चलने से,
मैं भूल जाता हूँ अपनो को,
उनके दिये जख्मों को,
उन पर छिड़के नमको को।
पुस की रात जरा …………….

तेरी ठंड की कसक ,
कुछ पल तक ही सिहराती हैं।
अपनों की दी जख्में,
वक्त-वेवक्त मुझे रुलाती हैं।
पुस की रात जरा …………….

पुस की रात तुम तो बस,
चंद लम्हों के लिए आती हैं।
अपने की वेवफाई मुझे,
हर वक्त सुई चुभों जाती हैं।
पुस की रात जरा …………….

तेरे सिहरन में वो टिस नही,
जो भुला दूँ मैं अपने घावों को।
मैं मिलना भी चाहूँ तो,
रोक ले मेरे पावों को।
पुस की रात जरा …………….

Exit mobile version