बारिश
बारिश के बूंदों से याद आती हैं
वोह सौंधी सी खुश्बू
जो मन को भाती थी
वोह गली वोह नुक्कड़
जिनमे ख्वाब देखा था
जेब छोटी ही सही
पढ़ दिल बड़े हुआ करते थे
कीचड़ मै वोह गिड़ते पढ़ते
फुटबॉल मैच
वोह चाय और पकोड़े
जिनमे टूट पढ़ते थे
अपनेपन की झलक हर मैं ढूंढते थे
दिल मै सब भाते थे
दोस्त ऐसे ही बनते थे
ना स्टेटस और पैसा देख कर
आज फिर वोह दिन जीने की चाहत होती हैं
पर चार दोस्त वैसे जुटाने मै उम्र गुजर जाती हैं
सब अपने जिंदगी मै इतने मशगूल हुए हैं
बाप बेटे पति खोए हुए हैं मेरे दोस्त कही
बहुत सुन्दर रचना
धन्यवाद