बिखरे बिखरे ख्वाब

बिखरे बिखरे ख्वाब
सुलगते सुलगते आंसूं
सीने में तूफ़ान
दिल में बस कशिश
काफिले यादों के लम्बे
कोई शै मुकम्मल नहीं
तनहा तनहा सफर
लम्बी लम्बी रातें
न वफ़ा का इल्म
न जफ़ा का तजुर्बा
बस एक गहरी खाई सी जीस्त
उस पर भी सुकु के ,
पंख होते तो उड़ते फिरते
खुली हवा में भी ,
पिंजरे का बंदपन
सांसें भी लेते है ,
खुद पे अहसान जताकर
लगता है सृष्टि रचते वक़्त ही ,
ग़ज़ल भी रच दी गई थी
राजेश ‘अरमान’ १४/०२/१९९०

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close