बुझे चरागों को हवाओं
बुझे चरागों को हवाओं का करम न दे
मेरी हस्ती मिटने का कोई भरम न दे
जो गुजरा नहीं खुद , मगर आखिर गुजरा
तुम फ़क़त कोई उदास सा वहम न दे
जुबाँ जो है हाथों को कोई खंजर क्या दे
मेरे ज़ख्म हरा रख, कोई मरहम न दे
फिर कोई मौसम गुजरा मेरे वीरानो में
तेरी चुप से लिपटा कोई मौसम न दे
जो भी लिखता, दिल से लिखता ‘अरमान’
मेरे इन हाथों को कोई कलम न दे
बुझे चरागों को हवाओं का करम न दे
मेरी हस्ती मिटने का कोई भरम न दे
राजेश ‘अरमान’
वाह
Nice