धीमी-धीमी धूप संग में,
मीठी-मीठी खुशियां लाई।
तिल, गज्जक की खुशबू लेकर,
सर्दी में संक्रान्ति आई।
मकर संक्रान्ति मनाना है,
गंगा जी में नहाना है
गंगा जी ना जा पाओ तो,
घर में जरूर नहाना है,
सर्दी है तो हुआ करें,
ना करना कोई बहाना है।
तन में हो मस्ती मन में उमंग,
नीले अम्बर में रंग-बिरंगी उड़े पतंग।
कभी-कभी किसी की कटे पतंग,
हम भी छत पर ले कर खड़े पतंग।
ऊंची उड़ान ले पतंग आपकी,
टूटे ना डोर कभी विश्वास की।
हर पल सुख हो, हर दिन हो शांति,
सबकी ऐसी हो मकर सक्रांति।
गज्जक और पकवान है लाई,
मकर संक्रान्ति की आपको बधाई।।
_____✍️गीता