शबनम से भीगे लब हैं, और सुर्खरू से रुख़सार;
आवाज़ में खनक और, बदन महका हुआ सा है!
.
इक झूलती सी लट है, लब चूमने को बेताब;
पलकें झुकी हया से, और लहजा ख़फ़ा सा है!
.
मासूमियत है आँखों में, गहराई भी, तूफ़ान भी;
ये भी इक समन्दर है, ज़रा ठहरा हुआ सा है!
.
बेमिसाल सा हुस्न है, और अदाएँ हैं लाजवाब;
जैसे ख़्वाबों में कोई ‘अक्स’, उभरा हुआ सा है!
.
जाने वालों ज़रा सम्हल के, उनके सामने जाना;
मेरे महबूब के चेहरे से, नक़ाब सरका हुआ सा है!!
ღღ__अक्स__ღღ
.