हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है
बेटी का कुछ वर्षों का मैके से नाता है ।
हीना रचने से पहले थी अलहङ
अब चौका-चुल्हा बना भाग्य विधाता है
थोड़ी सी भूल, भूलवश हुई हमसे
माँ-बाप को कोशा जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
दहेज़ की बोझ से दबे माँ-बाप
कहते चुप रहकर सह यह संताप
पगङी की लाज तुझे है रखना
गम खाकर तुम बस चुप रहना
समाज के डर से वे, कुछ कहा नहीं जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
दर्द सहा अब जाता नहीं, आता कोई संदेशा नहीं
मैके गये हुए अर्सा, उसपर व्यंगो की वर्षा,
दहेज़ की कमी हर-पल दिखलाया जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
अब और नहीं, उत्पीड़न यह, मै झेलूगी
इनकी फरमाइशो को ना, मैके में बोलूंगी
हर दर्द को ले साथ-साथ, मौत के संग खेलूँगी
ऐसे ही नहीं कोई मौत को गले लगाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।।