मिलती-जुलती गाथा है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है
बेटी का कुछ वर्षों का मैके से नाता है ।
हीना रचने से पहले थी अलहङ
अब चौका-चुल्हा बना भाग्य विधाता है
थोड़ी सी भूल, भूलवश हुई हमसे
माँ-बाप को कोशा जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
दहेज़ की बोझ से दबे माँ-बाप
कहते चुप रहकर सह यह संताप
पगङी की लाज तुझे है रखना
गम खाकर तुम बस चुप रहना
समाज के डर से वे, कुछ कहा नहीं जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
दर्द सहा अब जाता नहीं, आता कोई संदेशा नहीं
मैके गये हुए अर्सा, उसपर व्यंगो की वर्षा,
दहेज़ की कमी हर-पल दिखलाया जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
अब और नहीं, उत्पीड़न यह, मै झेलूगी
इनकी फरमाइशो को ना, मैके में बोलूंगी
हर दर्द को ले साथ-साथ, मौत के संग खेलूँगी
ऐसे ही नहीं कोई मौत को गले लगाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।।
बहुत ही मार्मिक भाव
सादर आभार
दोष तुम्हारा क्या है अबले
तुम काहे को घबड़ाती हो।
मिले दण्ड अब उन दोषी को
जो तुझको हर पल तड़पाती हो।।
मर जाओगी खुद जाओगी
बस अपनी हस्ती मिटाकर।
तेरे जगह कोई और आएगी
बन काठ की पुतली चाकर।।
‘विनयचंद ‘क्या ऐसे कभी
खतम हो जाएगा अत्याचार।
हे अबले तू सबला बनकर
हार न मानो कर प्रतिकार ।।
इतनी सुन्दर समीक्षा एवं हौसला रखकर प्रतिकार की सीख देती समीक्षा के लिए सादर आभार ज्ञापित करती हूँ
बहुत अच्छा है
👌✍✍
मार्मिक भाव है,
बहुत ही मार्मिक
मार्मिक भाव, सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर
Very nice poetry