मुक्तक

मुझे चाहतों का ईनाम मिल गया है!
मुझे बेरुखी का पैगाम मिल गया है!
बिखरी हुई लकीरें हैं अरमानों की,
दर्द का आलम सुबह शाम मिल गया है!

#महादेव_की_कविताऐं'(22)

Related Articles

खता

लम्हों ने खता की है सजा हमको मिल रही है ये मौसम की बेरुखी है खिजां हमको मिल रही है सोचा था लौटकर फिर ना…

मुक्तक

मेरे दर्द का आलम गुजर गया है! तेरी बेरुखी का जख्म भर गया है! कोई नहीं है मंजिल न राह कोई, चाहतों का हर मंजर…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close