मुक्तक

“मुक्तक”
खुद कभी माना नही जिसको सीखाते है
थे कभी बहरे जो दुनियां को सुनाते है !
जिन्दगी जिसकी हुई जाया ही गफलतों में
ओ भी हमारी चाल पर उंगली उठाते है !!

पीते हुए बैठे थे कल देखा उन्हे बहुत
लो है पीना खराब वही सबको बताते है !
सबसे नकारा देश के घोषित जो हो गये
क्या बदनसीबी देश को ओ ही चलाते है !!

लाखों करोडों फूंक कर पहुँचते है पैर तक
पापी को संत बोल कर क्या क्या चढाते है !
अभाव में पैसों की एक मासूम खट रहा
उसकी मदद में भूल कर भी जो न आते है !!
उपाध्याय…

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