मैं निरीह…
वह मुझे बताता है निरीह निर्जन निरवता वासी हूँ जब से मानव मानव न रहा मै बना हुआ वनवासी हूँ | अवतरण हुआ जब कुष्ठमनन…
वह मुझे बताता है निरीह निर्जन निरवता वासी हूँ जब से मानव मानव न रहा मै बना हुआ वनवासी हूँ | अवतरण हुआ जब कुष्ठमनन…
समेटता हूँ बिखरते ख्वाब को सजाता हूँ रोज तकदीर को लिखता हूँ और मिटाता हूँ | जो मद में चूर हो भूले है अपने ओहदे…
फिरे तो सरफिरे है आग ही लगा देंगे पाक नापाक का नामो निशां मिटा देंगे | हमें ना खौफ कोई तोप या संगीनों का लडे…
आज जज्बे का इम्तेहा होगा कल कदमों में ये जहाँ होगा | आज काश्मीर जीत लेना है कल कब्जे में पाकिस्तां होगा || न धौंस…
मेरा देश महान घनघोर घटा में अलख जगा कर देख रहा मतिहीन, जाग सका ना घन गर्जन पर जग सोने में लीन, इस निस्तब्ध रजनी…
“मुक्तक” आओ अतीत के हम झरोखो में झांक लें जरा उनके और अपने करम को हम आंक लें जरा | जो मर मिटे वतन पे…
दिनांक-२०-७-२०१६ विधा- गीत संदर्भ- स्वतंत्रता दीवस तर्ज- बहुत प्यार करते है तुझसे सनम… …………………………………………………… झूकने न देंगे तिरंगे को हम-२ हमको हमारी भारत माता की कसम -२ झूकने न देंगे तिरंगे को हम-२ हमे मातृभूमि अपने प्राणों से प्यारी-२ हम है दुलारे ये है माता हमारी -२ सब कुछ…
चलो चले … किसी नदी के किनारे किसी झरने के नीचें | जहाँ तुम कल कल बहना झर झर गिरना और… और मैं मंत्रमुग्ध हो…
मित्रता बड़ा अनमोल रतन मैं कर्ण और तु दूर्योधन | मैं बंधा हुआ एक अनुशासन तु परम् स्वतंत्र दु:शासन || उपाध्याय…
विविध उलझनों में जीवन फंसा हुआ है किंचित ही दिखने में सुलझे हुए है लोग | स्वार्थ की पराकाष्ठा पर सांसे है चल रही अपने…
विविध उलझनों में जीवन फंसा हुआ है किंचित ही दिखने में सुलझे हुए है लोग | स्वार्थ की पराकाष्ठा पर सांसे है चल रही अपने…
जमीं वही है मगर लोग है पराये से जो मिल रहे है लग रहे है आजमाये से! शफक नही नकॉब में फरेब है मतिहीन सभी…
मस्जिदों में काश की भगवान हो जायें मंदिरों में या खुदा आजान हो जाये ! ईद में मिल के गले होली मना लेते काश दिवाली…
चुभेगा पांव में कांटा तो खुद ही जान जायेगा जो दिल में दर्द पालेगा तड़प पहचान जायेगा | किसी की आह चीखों को तवज्जो जो…
दर्द है आह! है मोहब्बत में मजा भी तो है इश्क गुनाह है मुसीबत है सजा भी तो है ! दो दो जिस्म में एक…
थी मोहब्बत दिल में पहले हो गई नासूर अब पूछता न था कोई पर हो गई मशहूर अब ! उसका दिल रखने हजारों दे दिया…
लोगों की बातों में आकर मुझको ना तुम निराश करो मैं प्रणय निवेदन करता हूँ बस इतनी पूरी आश करो | वे भी उन्मादी प्रेम…
एक मुक्तक चढा सूरज भी उतर जायेगा तपन पर मेघ बरस जायेगा | देख अंधेरा धैर्य को रखना तिमिर को चीर प्रकाश आयेगा || उपाध्याय…
ये आँखे मेरी निर्झर जैसे झर जाती तो अच्छा होता जिग्यासा दर्शन की मन में मर जाती तो अच्छा होता | तुम पथिक मेरे पथ…
खुली हुई खिड़कियों से झांकते ही रह गये कट गया कोई मनहूस ताकते ही रह गये | गिरने का हद बढता गया जाना नही कभी…
………पानी बचा लो…….. पानी नही बचा तो धन करोगे क्या बटोर कर पानी बचा लो अपना कोई जतन निहोर कर | कब तक पिलाएगी धरा…
पुष्प की अभिलाषा -(एक मुक्तक) …………………………………………….. टूट कर शाख से शायद बिखर गया होगा कुचल कर और ओ गुल निखर गया होगा | जिसके जज्बे…
प्राण प्रग्या को बचाये चल रहा हूँ कर प्रकाशित मै तिमिर को जल रहा हूँ | अल्प गम्य पथ प्रेरणा देता मनुज मैं उतुंग गिरि…
रूह उठती है काँप जमाने की तस्वीर देख कर खुशनसीब और बदनसीब की तकदीर देख कर | कोई हाजमे को परेशां है कोई रोटी की…
अनुभव कंटक-जालों का बस उसी पथिक को होता है जिसका चरण अग्निपथ चलकर कभी जला होता है | मखमल और कंचन पर सोने वालों पता…
बिस्तर से उठ चुके हैं मगर अब भी सोये है न जाने कैसे ख़्वाब में मतिहीन खोये है | गैरत ईमान का खतना बदस्तूर है…
कुछ अंध बधिर उन्मूलन किया करते है अथवा पंगु गिरि शिखर चढा करते है | कुछ सीमित आय बंधन में बांध हवा को क्षैतिज उदीप्त…
“गान मेरे रुदन करते”(मेरी पुरानी रचना) गान मेरे रुदन करते कैसे मैं गीत सुनाऊँ जैसे भी हो हंस लेते तुम क्यों मैं तुझे रुलाऊँ |…
“बच्चे के जीवन में माँ का महत्व” …………………………………………. माँ तपती धूप में ओस की फुहार है माँ ममता है धरती का सबसे सच्चा प्यार है…
मस्जिदों में काश की भगवान हो जायें मंदिरों में या खुदा आजान हो जाये ! ईद में मिल के गले होली मना लेते काश दिवाली…
“मातृ दिवस पर चंद पंक्तियां ” …………………………………………….. जमाने में जो सच है जरा उसको बताइए दौर-ए भरम है युं नही बातें बनाईए | युं कहकहे…
मेरी पुरानी रचना… ……………………….. खाक पर बैठ कर इतना भी इतराना क्या दर्द चेहरे पे लिखा है इसे छिपाना क्या…! कब कहां किस तरह से…
“अशिक्षा पर एक छोटा सा व्यंग मुक्तक ” हिन्दी लिखते शर्म आती है अंग्रेजी में लोला राम चुप है जब तक छुपा हुआ है खुला…
उष्णत्तर उरदाह की अनुभूति क्या तुम कर सकोगे कृत्य नीज संज्ञान कर अभिशप्तता मे तर सकोगे ! एक एक प्रकृति की विमुखता पर पांव धर…
भूल कर भूल से ये भूल मत किया किजे कभी किसी को भरोसा नही दिया किजे | मुकर गर जाइये करके करार दिलवर से इस…
……………गजल…………. हम समंदर को समेटे चल रहे है ठंडे पानी में भी हम उबल रहे है ! दुश्मनों के पर निकलते जा रहे है देख…
……………..गजल……………. चल नही सकते तो टहल कर देखो तुम अपनी सोच बदल कर देखो ! दर्द के फूल किस तरह निखर जाते है आ मेरे…
नही नव्य कुछ पास में मेरे सपने सभी पुराने है आधे और अधूरे है पर अपने सभी पुराने है | कुछ विस्मृत हो गये बचे…
नही नव्य कुछ पास में मेरे सपने सभी पुराने है आधे और अधूरे है पर अपने सभी पुराने है | कुछ विस्मृत हो गये बचे…
चुप रहते है तो अंजान समझ लेते है बोल देते है तो नादान समझ लेते है | बात न माने तो कहते है मानता ही…
…………गीतिका……….. श्रृंगार उत्पति वही होती जब खिली फूल की डाली हो कुछ हास्य विनोद तभी भाता हंसता बगिया का माली हो | कलरव करते विहगों…
सूख गई धरती दाने दाने को पंछी भटक रहा झंझावात में बिन पानी सांसे लेने में अटक रहा | तिस पर भी प्रतिदिन मानव संवेदन…
संदर्भ:- वर्तमान में परिवार की परिभाषा … …………………………………………………. बदल गये रिश्ते नाते बदल गया परिवार बदल गये रीति रिवाज बदल गया घरबार | सिमित हुआ…
“गजल” चलो इक बार हम एक दुसरे में खो कर देख लें चलो इक बार हम एक दुसरे के होकर देख लें ! बिताएँ है…
” मै ही तो हूँ- तेरा अहम् ………………………….. मै ही तो हूँ तुम्हारे अंतरात्मा में रोम रोम में तुम्हारे | मैं ही बसा हूँ हर…
चलो चले … किसी नदी के किनारे किसी झरने के नीचें | जहाँ तुम कल कल बहना झर झर गिरना और… और मैं मंत्रमुग्ध हो…
जिन्दगी जब भी मुस्कुराती है गीत उनके ही गुनगुनाती है | पलक गीरते जो पास होती है आँख खुलते ही चली जाती है || कदम-कदम…
” मुक्तक ” आँखों से आंशुओं को यूँ जाया नहीं करते। हर बात पर बच्चो को रुलाया नहीं करते।। खुशिंया नहीं दे सकते ना सही…
ये गुलदान खाली है थोडे गुलाब दे देते मेरा गिलास खाली है थोडी शराब दे देते | कब से खडा मतिहीन है तेरे दीदार को…
कोई भी तीर चला ले मगर एक बात है खासिद, हमें भी चोट खाने में महारत कम नही हासिल | कहा मतिहीन करते है तजूर्बें…
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