मुक्त आकाश में
मुक्त आकाश में
हवाओं ने कब किसी का रास्ता रोका है
हम ही तेज हवाओं के भय से रास्ते बदल लेते है
रास्तों ने कब किसे रोका है
हम ही थक कर रूक जाते है
हम जानते है इन रास्तों का लावण्य
खो गए तो फिर ढूंढ़ना बेहद मुश्किल
रूठ गए तो मनाना बहुत कठिन
इच्छा बहुत है ,पाने की ,पहुचने की
पर तलाश हमेशा अधूरी
पता ही नहीं क्या पाना चाहते है और क्यों?
रास्ते गति दे सकते है ,ठिकाना नहीं
वो तो हमें तय करना है की जाना कहाँ है
दिक्कत बस इसी बात की तो है
न मंज़िल का पता ,न ठिकानो का
रास्ते टेढ़े मेढे है या सीधे
कुछ भी अन्दाज नहीं ,बस चलना है
बिना लक्ष्य के चलना उसी तरह है
जैसे ये पता न हो की उसका नाम क्या है?
उसका घर कहाँ है ?
उसके परिजन कौन है ?
आखिर इतनी अंजानी ज़िंदगी का कोई मतलब है ?
हम पहले ये तय करें मैं स्वयं कौन हूँ ?
फिर तय होगा की तुम चाहते क्या हो ?
क्या कभी किसी पंछी की उड़ान को देखा है ?
कितनी निश्छल होती है उड़ान
आकाश के साथ आँख मिचोली
हवाओं से होती वार्तालाप
हमने अपने पंख कुतर दिए है
इसलिए उड़ नहीं पाते आकाश में
हमें उस आकाश का रहस्य ही नहीं मालूम
हम खुद ही नहीं चाहते मुक्त आकाश
विचार बाधित हो सकते है बंधित नहीं
परिवर्तन स्वयं की क्रिया है
जिससे हम समग्र ‘ मैं’ को
करने दे विचरण मुक्त आकाश में
राजेश ‘अरमान’
Good
वाह बहुत सुंदर रचना