मुझमे में हु कही…
मुझमे में हु कही…
आईना में अक्सर देखा खुद को जब मैंने कही ,
चहेरे पे चहेरा हर दम दीखता है ,
वो मासूमियत सा खिलखिलाता बचपन,
देखू कहा,अब तू बता, ऐ मन,ढूंढ़ता हरदम दीखता है ,
मंज़िल ऐ सफर ,न कोई फ़िक्र ,
वो पल-वो कल ,
वो साथ अपनों का, ढुंढू तो भी अब कहा मिलता है,
वक़्त की कीमत का उस समय एहसास न था,
आज कोडी-कोडी कमाने के लिए कोई मुझमे हर दम मिलता है,
चहेरे पे ढुंढू कहा वो हस्सी अपने बचपन की ,
अब तो मुस्कुराने में भी मन को सूनापन लगता है ,
जीना को ज़िन्दगी तो बहुत लम्बी दी, ऐ खुदा ,
पर सबसे बेहतर जीने में बचपन लगता है।
one of my best creations
dedicated,
Nishit Yogendra Lodha
kavishayari.blogspot.in
fb page-kavi shayar
behad khoobsurat kavit… 🙂
thnkuu
:-}
nice 🙂
अब तो मुस्कुराने में भी मन को सूनापन लगता है —- Beautiful
dhanyawad sir