मुझे याद रहा, तुम भूल गए ……

मुझे याद रहा, तुम भूल गए
कहने को दो दिल चार आँखे हम,
थी एक रूह में बस्ती जान हमारी
कहने को दिया और बाती हम,
थी बस लौ ही पहचान हमारी
मदमस्त हवाओं के झोंकों से,
थे लहराते गाते जज़्बात हमारे,
उतार सजाया आस्मानो में,
थे सपने जो जनमें पलकों तले हमारे
कुछ यूँ खाईं थी क़समें हमने,
हर हाल में प्यार निभाएँगे
मिल पाए तो ज़िन्दा हैं,
ना मिल पाए तो यादों में निभाएँगे
हुए गर तन से ज़ुदा तो क्या,
ज़ुदा ना मन से कभी हो पाएँगे
गर साँसें छोड़ जाएँ साथ तो क्या,
जन्मो का साथ निभाएँगे
बरसों से हम उसी मोड़ पे अटके,
राह जहां से तुम बदल गए
मोहब्बत को नए मायने दे कर,
उन मायनों को ही तुम बदल गए
उठा फर्श से अर्श पे बिठा हमको,
अपना अर्श ही तुम बदल गए
वफाएँ लेती थी तुमसे सबक वफ़ा का,
अपना सबक ही तुम बदल गए
जब मुझको सब यह याद रहा,
कैसे तुम सब भूल गए
मर के भी यूई भूल ना पाया,
तुम जिंदा रह के भूल गए …… यूई
bahut sundar rachna!
Gud one 🙂