किसी की सिसकियां सुनती थी अक्सर,
कोई दिखाई ना देता था।
देखा करती थी इधर-उधर,
व्याकुल हो उठती थी मैं,
लगता था थोड़ा सा डर।
एक दिन मेरा मन मुझसे बोला..
पहचान मुझे मैं ही रोता हूं,
अक्सर तेरे नयन भिगोता हूं।
मासूमों पर अत्याचार,
बुजुर्गों को दुत्कार,
वृद्धाश्रमों में बढ़ती भीड़,
नारियों की पीड़,
इन्हीं से दिल दुखी है
दुनिया में क्यों हो रहा है यह व्यवहार।
कब समाप्त होगा यह अत्याचार,
बस यही सोच-सोच कर हो जाता हूं दुखी,
कब तक होगा यह जग सुखी।।
____✍️गीता