मेरी दुश्मन है बे अक्ली हमारी

मेरी दुश्मन है बे- अकली हमारी
दिखी औकात अब असली हमारी
मेरे आँसू छुपा लेता है बिस्तर
हँसी है यार अब नकली हमारी।

हमें ही मान बैठे हो खुदा तुम
मगर करते हो फिर चुगली हमारी।

जजीरें तोड़ दी मैंने जहां की
सभी ने टागे फिर काटी हमारी।

पुरुष ही शेष है नारी के भीतर
कहीं अब खो गई नारी हमारी।

अकड़ ही रह गई इंसान में अब
सिकुड़ती जा रही रस्सी हमारी।

नहीं चलती हूं मैं उस राह पे अब
जहां से उठ गई अर्थी हमारी।

पड़ी रहती हूं मैं कमरे के भीतर
हमें ही भा गई सुस्ती हमारी।

दरो दीवार पर चेहरा है उसका
नजर ही हो गई अंधी हमारी।

सभा में मौन बैठे ही रहे सब
रही थी द्रौपदी लुटती हमारी।

कभी भी याद उसकी आ गई जो
कि हालत ही नहीं सभली हमारी।

मेरी बाहों से हिजरत करने वाले
क्या तुमको याद है चुप्पी हमारी।

प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close