मेरे जज्बात
मेरे जज्बात अब पत्थर हो गए है
अब फूलों की बातें पहरों में सिसक रही है
अब लहरें समुन्दर की सांसें बन गई है
अब हवाओं में फैल गए है नग्मे दर्द भरे
अब जमाने से खत्म हो गईं यारी अपनी
अब किताबों से गुम हो गए मेरे पन्ने
अब न कोई पिंजरा न कोई आसमान
अब न कोई शाम उदास ,न रातें तन्हा
अब खौफ खुद बन गया है हादसा
अब ख्वाब खुद हो गए है खवाइश
अब अलफ़ाज़ मेरे खुद हो गए बंदी
अब किसी ईमारत में जड जाना चाहता हूँ
मेरे जज्बात अब पत्थर हो गए है
राजेश’अरमान’
nice poetry
सुन्दर रचना