मेरे तस्सवुर के रंग
मेरे तस्सवुर के रंग क्यों फीके होने लगे है
मेरे सायें भी अब मुझसे दूर होने लगे है
मैंने गिन गिन के सजाये थे जो मेरी वसीयत थी
वो लम्हे क्यों मेरी ज़िंदगी से कम होने लगे है
माना की जुस्तजू से ताल्लुक रखना है गुनाह
अब तो हर ताल्लुक मेरे अपनों से खोने लगे है
मिज़ाज़ वक़्त का होता है किसी मदारी जैसा
हम भी चुपचाप किसी खेल में होने लगे है
अपने दरवाजें को बंद कर दे ‘अरमान’
ख्वाब आँखों में आके फिर सोने लगे है
राजेश’अरमान’
behatar janaab 🙂
thanx
thanx
Good