मैंने जीतने की खवाइश की

मैंने जीतने की खवाइश की
हार खुदबखुद शर्मा गई

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ये ख्वाइशें

रेत के महलों की तरह ,हरदम ढहती है ये ख्वाइशें फिर भी हर पल क्यों सजती सवरती है ये ख्वाइशें उम्मीदे इन्ही ज़िंदा रखती सांसों…

मुद्दतें हो गईं

दोस्तों से मिले मुद्दतें हो गईं, देखे हुए चेहरे खिले, मुद्दतें हो गईं कोरोना ने जाल बिछाया ऐसा, बाहर ना निकल सके हम बाहर की…

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