याद आता है मुझको अपना गांव,
वो बड़ा सा आंगन, वो नीम की छांव।
बारिश के पानी में, चलती थी कागज़ की नाव,
ख़ूब खेलते थे, धूप हो या छांव।
जब से आई है ये बैरन जवानी,
ख़तम हो गई बचपन की कहानी।
एक – एक करके सखियां ससुराल चली,
मुझे भी जाना होगा अब पी की गली।
शहर से आया एक दिन एक कुमार,
मुझसे शादी करने को हुआ तैयार।
मां – पापा को था बस यही इंतजार,
बाबुल की गलियां छूटी, आ गई पिया के द्वार।
फ़िर भी अक्सर आता है याद गांव,
वो बड़ा सा आंगन, वो नीम की छांव।