वक़्त लिखता रहा कागज़ पे

वक़्त लिखता रहा कागज़ पे
हम उसे मोड़ के बैठे रहे

Related Articles

Likhta hoon

जो दिल में उतर जाए ऐसे जज़्बात लिखता हूँ, रातों की नींदें चुरा ले ऐसे ख्वाब लिखता हूँ। हकीम नहीं हूँ मैं कोई साहब, पर…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

कागज़ और कलम

जब आसपास की खट पट खामोशी में बदलती है। जब तेज़ भागती घडी की सुइंया धीरे धीरे चलती है।।   दिनभर दिमाग के रास्तों पर…

Responses

New Report

Close