शमशान तक क्या चल सकोगे?
गर सजा दूं मौन होकर प्राण तरुवर को धरा पर
गर धुला आंगन हो आँसू के बिछौने बिछ रहे हों
गर तुम्हारे प्रेम को अभिव्यक्त करना आ गया हो
गर हमारे बीच में उन्मुक्त हो अंबर खड़ा हो
तो हमारी देह को तुम श्वेत आंचल दे सकोगे ?
आखिरी बारात में श्यामशान तक क्या चल सकोगे ?
याकि मूर्खों की निशानी आँख में लाकर के पानी
मृत हुए अवशेष को प्रज्ञा’ नहीं मृत वेश को
आंसुओं से सींच दोगे गोद में धर शीश लोगे
और बोलोगे नहीं बस देख कर हंसते रहोगे।
क्या हमारे बाद भी तुम मुस्कुरा कर जी सकोगे ?
मेरे गीतों को गले अपने लगा कर देख लेना
मेरी तस्वीरों को अपने हाथ लेकर देख लेना
मेरी आवाजें तुम्हारे कानों तक आती रहेंगी
फोन में एक बार मुझको सर्च कर के देख लेना
क्या मुझे जीवित समझ महसूस खुद में कर सकोगे ?
मैं हूं पापा की दुलारी आँसू उनके पोंछ देना
भाइयों के धीर को तुम गीता का संदेश देना
मां मेरी स्तब्ध आंचल सूना उनका जब हुआ हो
मां के आंचल में मेरी कुछ वस्तुओं को सौंप देना
क्या मेरे परिवार को तुम सांत्वना भी दे सकोगे ?
Kavyarpan
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