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शहीदों के घर होली

होली आई रे, आई रे ,होली आई रे।
यादों की धूल उड़ाती सी ,
खूनी मंजर दोहराती सी,
चहरों की फीकी रंगत पर रंगों का जामा चढ़ाती सी फिर देखो होली आई है।
मन मस्त नहीं उदासी है, अखियां दर्शन की प्यासी है ,
चंद सांसों की मोहताजी है ,
जख्मों की यादें ताजी हैं ।
गुजिया मठरी रंगीन हुई, आंखें भी सब रंगीन हुईं,
कड़वी यादें शमशीर हुई ,
खुशियां धरती में लीन हुई,
उन सूनी- सूनी अंखियों में,
बीती होली रंगीन हुई ।
कुछ हंसी ठिठोली हवाओं में,
कानों में रस सा घोल गई ।
हे भगवन ! सूनी सी अंखियों में,
कुछ होली के रंग भर देना,
दुख सारे तुम बस हर लेना,
मुस्कान मधुर तुम दे देना ,मुस्कान मधुर तुम दे देना ।
निमिषा सिंघल

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