श्रृंगारी

लिखा था नाम जो दिल की जमीं पर पढ़ रही हूं मैं
कि उनका रूप ही हर आईने में गढ़ रही हूं मैं

मेरी हर शायरी में अब अलग ही मोजिजा सा है
सुनाती हूं गज़ल यूं जैसे कलमा पढ़ रही हूं मै।

हैं उनके नैन जैसे सीप में मोती चमकता हो
रूप ऐसा कि काली रात में चंदा चमकता हो ।

श्यामल केश जब मस्तक को उनके चूम लेते हैं
जैसे दूधिया पुष्पों पे भंवरे झूम लेते हैं ।

अधर जैसे गुलाबी पुष्प ने पाई हो तरुणाई
तिमिर शय्या पे जा लेटा उगी पूरब से अरुणाई।

वो मेरे साथ ना होकर भी यूं महसूस होते हैं
जैसे चांद सूरज आसमां में साथ होते हैं ।

बुझी सुलगी मगर इस राख में अब भी है चिंगारी
इसी कारण विरह के गीत भी लगते हैं श्रृंगारी।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close