संकल्प
है कुछ करना भी मुझे कुछ नया सा कुछ अलग
की मैं न बस रहूँ एक धूमिल खंडित नग——(१)
तोड़के बंधन सभी, छोड़के सब व्याधियां
लो चला मैं देख लो नव सृजन करने अभी——-(२)
आज मेरे हौंसले चट्टान से भी सख्त हैं
मेरे मन में हैं भरे वन उल्लास के ना मायूसी के दरख़्त हैं ——-(३)
आज उठ कर हम सभी संकल्प क्यों ना ये करें
तोड़ देंगे हम सभी उन खरपतवारी नियमो को———(४)
जिनके कारण एक दुसरे के मन में भरी घृणा रहे
फिर हमारी मुस्कुराहटों से प्यार का पौधा हरे ———-(५)
– कुलदीप
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