सदियों से रहा है सोने की चिडिया ये मेरा देश
सदियों से रहा है सोने की चिडिया ये मेरा देश ,
मुफलिस में फँसा जीवन कैसे सम्भाला जाएगा।
भूख से बैचन हैं यहाँ इन्सान की आत्मा।
जाने कब पेट में इक निवाला जाएगा।
इक तरफ है रौशनी रंगिनियाँ महफिलें।
कब तलक अभावग्रस्त जन यूँ सम्भाला जाएगा।
नहीं पूछते गरीब कभी गरीबनवाज का वो दर,
जहाँ मिटे तकलीफ वो उस दर पै जाएगा।
होती नहीं कोई पहचान कभी किसी गरीब की ,
गरीब अपनी गरीबी से ही पहचाना जाएगा।
आती नहीं बहार क्यूँ अब अपने भी चमन में,
कब तलक खिलने से पहले कलियों को नौचा जाएगा।
निकलते नहीं सरे शाम अब घर से हम।
कब तलक अँधेरा हमें यूँ डराएगा।
पूर जोर की हैं कोशिशें पर जब है खाली।
घर पर उम्मीदों को फिर बहलाया जाएगा।
कोई खा खा के है परेशान जनाबे आली।
कोई आज फिर खाली पेट, मार मूस खाएगा।
इतना बडा भेदभाव क्यों मेरे मौला।
कब धरा पर सुख चैन का सवेरा आएगा।
सावित्री राणा
काव्य कुँज।
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