समुन्दर किनारे
हर लहर उठती है एक नयी उम्मीद लेकर
खाती ठोकर चट्टानों की,अपना सबकुछ देकर
फिरभी खिंचती चली आए, मिलने किनारे से
इन दोनों का प्यार चला है इक ज़माने से
एक अरसे से किनारा भी उसकी कदर करे
खुली बाहें और प्यार भरे दिल से सबर करे
वहीँ मिलते ही खुशियों के बुलबुले बने
और वहां बैठे प्रेमियों के भी सिलसिले चलें
कुदरत के रोमांस का ये अद्भुत अंदाज
खुद ही संगीत दे और खुद ही है साज़
जीते ये सदियों से एक दूसरे के सहारे
कुछ देर और बीठलु मैं समुन्दर किनारे
Nice poem sir
Thank you dear
वाह बहुत सुंदर