हादसे इसकदर कुछ हो गये हैं!

हादसे इसकदर कुछ हो गये हैं!
गम-ए-हालात से हम खो गये हैं!
हसरतें बिखरी हैं रेत की तरह,
ख्वाब भी पत्थर से कुछ हो गये हैं!]

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