ग़ज़ल
वो लोग भी एक खास ही जगह रखते है
जो वक़्त पर मेरे सामने आईना रखते है
कोई क्या लगाएगा मेरे वफ़ा का अंदाज़ा
हम तो दिल भी किसी के पास रखते है
गर देखना हो कभी अश्क़ों की सुनामी तो
दरिया क्या हम समंदर भी आँख में रखते है
तुझे लिखने का गुनाह तो अब कर दिया है
सज़ा दो कदमो में तेरे पूरी ग़ज़ल रखते है
“विपुल कुमार मिश्र”
#VIP~
OSM
व
वाह