ज़िंदगी धुप -छोंव्

ज़िंदगी धुप -छोंव्
तपती रेत धसते पाँव

राही सुप्त
बिखरे ख्वाब मंज़िल लुप्त

टूटे सपने
अहसास हुआ थे ये अपने

जख्म हरे
जो की पीड़ा से भरे

दुःख के घेरे
चारों और घनघोर अँधेरे

मौत आखरी दांव
लम्बे सफर का अंतिम पड़ाव
राजेश ‘अरमान’ 19/10/1991

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

अरमां था ज़िंदगी

अरमां था ज़िंदगी से कभी मुलाकात होगी बिठा पलकों पे कुछ खास बात होगी सोचता था होगी ज़िंदगी मेरी फूलों की तरह निकाले होगी घूँघट…

Responses

New Report

Close